Revision as of 10:18, 12 May 2017 editPashupatinath temple (talk | contribs)3 editsm →External links← Previous edit |
Revision as of 01:48, 29 November 2017 edit undoMs Sarah Welch (talk | contribs)Autopatrolled, Extended confirmed users, Pending changes reviewers, Rollbackers34,946 edits remove NONENG, this is english wikipedia!, add sourcesNext edit → |
Line 1: |
Line 1: |
|
|
{{Infobox religious building |
|
{{Unreferenced|date=May 2007}} |
|
|
|
| name = Pashupatinath Temple |
|
] |
|
|
|
| image = Pashupatinath Mandsaur.jpg |
|
'''Pashupatinath Temple''' ({{lang-hi|पशुपतिनाथ मन्दिर}}) in ], ] is a ] of Lord ]. |
|
|
|
| alt = |
|
|
| caption = Eight faced Mandasor Shiva Linga |
|
|
| map_type = India #India Madhya Pradesh |
|
|
| relief = yes |
|
|
| religious_affiliation = ] |
|
|
| other_names = |
|
|
| proper_name = |
|
|
| coordinates = {{coord|24|03|21.1|N|75|04|22.7|E|display=inline,title}} |
|
|
| country = ] |
|
|
| state = ] |
|
|
| location = ] |
|
|
| elevation_m = |
|
|
| deity = ], others |
|
|
| festivals= |
|
|
| architecture = |
|
|
| year_completed = 5th or 6th-century<ref name="Collins1988p97">{{cite book|author=Charles Dillard Collins|title=The Iconography and Ritual of Siva at Elephanta|url=https://books.google.com/books?id=shgtik9gYnIC&pg=PA97|year=1988|publisher=State University of New York Press|isbn=978-0-7914-9953-5|pages=97–120}}</ref> |
|
|
| creator = |
|
|
| website = |
|
|
}} |
|
|
__NOTOC__ |
|
|
'''Pashupatinath Temple at Mandsaur''', also referred to as the '''Mandasor Shiva temple''', is a ] dedicated to Shiva in ], ] India. It is a ] tradition temple within ] located on Shivna River, and is known for its eight faced Shiva Linga. The temple and its sculpture is dated to the 5th or 6th century based on inscriptions, with some referring to the site as Dasapura. It is near the ] border, about {{convert|200|km}} from ], about {{convert|340|km}} west of Udaigiri Caves and about {{convert|220|km}} east of Shamalaji ancient sites, both a significant source of Gupta Empire era archaeological discoveries.<ref name="Collins1988p97"/> |
|
|
|
|
|
==External links== |
|
==See also== |
|
|
*] |
|
|
|
|
|
|
==References== |
|
https://religious.mponline.gov.in/PashuPatiNath |
|
|
|
{{reflist|30em}} |
|
|
|
|
|
|
==External links== |
|
* {{Official website|http://shripashupatinath.nic.in}} |
|
|
|
* {{Commons category inline|Sas Bahu Temple, Gwalior}} |
|
|
|
⚫ |
] |
|
|
|
|
|
|
|
|
शिवना के दक्षिणी तट पर बना अष्टमुखी का मंदिर इस नगर के प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं। आग्नेय शिला के दुर्लभ खण्ड पर निर्मित शिवलिंग की यह प्रतिमा है। 2.5*3.20 मीटर आकार की इस प्रतिमा का वजन लगभग 46 क्विंटल 65 किलो 525 ग्राम हैं। सन् 1961 ई में श्री प्रत्यक्षानन्द जी महाराज द्वारा मार्गशीर्ष 5 विक्रम सम्वत् 2016 ( सोमवार 27 नवम्बर 1961) को प्रतिमा का नामकरण किया गया एवं प्रतिमा की वर्तमान स्थल पर प्राण प्रतिष्ठा हुई। |
|
|
|
|
|
प्रतिमा की तुलना नेपाल स्थित पशुपतिनाथ प्रतिमा से की जाती है, किन्तु नेपाल स्थित प्रतिमा में चार मुख उत्कीर्ण हैं, जबकि यह ऐतिहासिक प्रतिमा भिन्न भिन्न भावों को प्रकट करने वाले अष्टमुखों से युक्त उपरी भाग में लिंगात्मक स्वरूप लिये हुऐ हैं । इस प्रतिमा में मानव जीवन की चार अवस्थायें- बाल्यकाल, युवावस्था, प्रोढावस्था व वृध्दावस्था का सजीव अंकन किया गया हैं । सौन्दर्यशास्त्र की दृष्टि से भी पशुपतिनाथ की प्रतिमा अपनी बनावट और भावभिव्यक्ति में उत्कृष्ट हैं। इस प्रतिमा के संबंध में यह एक देवी संयोग ही रहा कि यह सोमवार को शिवना नदी में प्रकट हुई। रविवार को तापेश्वर घाट पहुंची एवं घाट पर ही स्थापना हुई। सोमवार को ही ठीक 21 वर्ष 5 माह 4 दिन बाद इसकी प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। मंदिर पश्चिमामुखी है। पशुपतिनाथ मंदिर 90 फीट लम्बा 30 फीट चौडा व 101 फीट उंचा हैं । इसके शिखर पर 100 किलो का कलश स्थापित है, जिस पर 51 तोले सोने का पानी चढाया गया हैं। इस कलश का अनावरण 26 फरवरी 1966 स्व राजामाता श्रीमती विजयाराजे सिंधिया द्वारा किया गया था। प्रतिमा प्रतिष्ठा की शुभ स्मृति स्थापना दिवस को पाटोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है एवं मेले का आयोजन किया जाता हैं । मेला प्रतिवर्ष कार्तिक एकादशी से मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी तक आयोजित किया जाता है। |
|
|
|
|
|
अष्टमुर्ति की साज सज्जा का विवरण कालिदास के निम्न वर्णन से मिलता है। |
|
|
|
|
|
कैलासगौरं वृषमारूरूक्षौ: पादार्पणानुगृहपृष्ठम। अवेहि मां किडरमष्टमूर्ते:, कुम्भोदर नाम निकुम्भमित्रम्। |
|
|
|
|
|
पूर्व मुख - शांति तथा समाधिरस का व्यंजक हैं । भाल पर माला के दो सुत्रों का बंध हैं । सूत्रों के उपर गुटिका कलापूर्ण ग्रंथियो से ग्रथित हैं। सर्प कर्णरंध्रो से निकलकर फणाटोप किये हैं। गले में सर्पमाला एवं मन्दारमाला है। अधर और ओष्ट अत्यंत सरल एवं सौम्य है। नेत्र अघोंन्मीजित है। मुखमुद्रा कुमारसम्भव में वर्णित शिव समाधि की याद दिलाती है। तृतीय नेत्र की अधिरिक्तता प्रचण्ड हैं, मानों सदन को अलग बना देने को तत्पर हो। |
|
|
|
|
|
दक्षिण मुख - मुख सौम्य हैं एवं केश कलात्मक रूप से किया गया हैं। श्रृंगार में सुरतीघोपन और श्रमापानोदन के लिये चंद्ररेखा है। गले सर्प द्वय की माला एवं सर्पकुण्डल हैं। यह मुख अतीव कमनीय है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कुमार संभव का वर अपनी विवाह यात्रा पर चलते समय अपनी श्रृंगार लक्ष्मी की आत्मा मोहिनी छवि को देखकर सोच विचार कर स्वयंमेव मुग्ध होकर रसमग्न हो रहा है। |
|
|
|
|
|
उत्तर मुख - यह मुख जटाजूट से परिपूर्ण हैं तथा इसमें नाग गुथे हुये हैं । जटायें दोनों ओर लटकी है। गाल भारी गोल मटोल कर्ण- कुण्डलो से युक्त तथा रूद्राक्ष और भुजंगमाला पहने हैं । |
|
|
|
|
|
पश्चिम मुख - शीर्ष में जटाजूटों का अभाव है तथा केश नाग ग्रंथियों से ग्रंथित है। मुख में रौद्र रूप स्पष्ट हैं। नेत्र एवं अधोरष्ट क्रोध में खुले हुए है, मुख वक्र है। इस मुख को तराश कर नवीन कर दिया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुमारसम्भव के योगिश्वर की समाधि भंग हो गयी हो। |
|
|
|
|
|
अभिज्ञान शाकुतलम् में (1/1) महाकवि कालिदास ने इन अष्टमूर्ति को यों प्रणाम किया है: |
|
|
|
|
|
या सृष्टि: सष्टुराधा वहति विधिहुंत या हविर्या च होत्री । या द्वे कालं विषयागुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्। या माहु: सर्वे: प्रकृतिरिति यथा प्रणानि:। प्रत्यक्षामि: प्रसन्नस्तनुभिखत् वस्ताभिरष्टाभिरीश:।। |
|
|
|
|
|
(विधाता की आघसृष्टि (जलमूर्ति) विधिपुर्वक हृदय को ले जाने वाली(अगिनमूर्ति) होत्री(यजमान मुर्ति) दिन रात की कत्री (सूर्य- चंद्र मूर्तिया सब बीजों की प्रकृति (पृथ्वी मूर्ति) और प्राणियों के स्वरूप (वायुमूर्ति)- इन सब प्रत्यक्ष अपनी अष्टमूर्तियों से भगवान महेश्वर आप प्रसन्न हो।) |
|
|
|
|
|
पशुपतिनाथ मंदिर परिसर - मंदिर परिसर में श्री रणवीर मारूती मंदिर, मंदिर दाहिनी ओर श्री जानकीनाथ मंदिर, पश्चिम दिशा में थोडी दूरी पर प्रत्यक्षानन्द जी महाराज की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। आगे की ओर बाबा मस्तराम महाराज की समाधि हैं। सिंहवाहिनी दुर्गामंदिर, श्री गायत्री मंदिर, श्री गणपति मंदिर, श्री राम मंदिर, श्री बगुलमुखी माता मंदिर, श्री तापेश्वर महादेव मंदिर, सहस्त्रलिंग मंदिर भी मंदिर में स्थापित हैं। |
|
|
|
|
|
शिवना नदी - जिले के सालगढ कस्बे से लगभग 4 किमी दूर रायपुरिया की पहाडियों की तलहटी में शवना नामक छोटा सा ग्राम बसा हैं। यह ताम्राष्म युगीन बस्ती हैं। यहॉ महाकाल चौबीस खंभा प्राचीन मंदिर है। शवना ग्राम के समीप से शिवना का उदगम है इसलिए यह नदी शिवना के नाम से प्रख्यात है। शिवना नदी 65 किमी का सफर तय करने के उपंरात चंबल में मिलती हैं। |
|
|
|
|
|
Contact Us ← Back |
|
|
|
|
|
Contact Details |
|
|
|
|
|
Office Address |
|
|
- श्री पशुपतिनाथ मंदिर मन्दसौर जिला एवं तहसील मन्दसौर मध्यप्रदेश भारत |
|
|
|
|
|
Office Phone Number |
|
|
- 07422&205288 |
|
|
|
|
|
|
|
{{Hindudharma}} |
|
Rahul Runwal Manager Mob. |
|
|
- 8982542004 |
|
|
|
|
|
|
⚫ |
] |
|
Dinesh Parmar Assistant Manager Mob. |
|
|
- 9977651377 |
|